दिनांक 19/10/23 को शारदीय नवरात्रि उत्सव एवं महान मराठा नायक शिवाजी के जीवन परिचय पर आधारित प्रातः कालीन विशेष प्रार्थना सभा का आयोजन किया गया। यह प्रार्थना सभा कक्षा 11 बी के विद्यार्थियों द्वारा आयोजित थी। श्रीमती रश्मि मारवाह इस वर्ग की संरक्षक अध्यापिका हैं। चिन्मय जैन और अर्णव गोयल ने संचालन करते हुए बताया कि नवरात्रि और दशहरा भारत के प्रमुख त्योहार हैं। ये त्योहार हमारी संस्कृति को समृद्ध करते हैं और इनके प्रतीकात्मक अर्थ हैं। शक्ति की आराधना अपनी सकारात्मक ऊर्जा को जागृत करने एवं रावण दहन अपनी बुराइयों को नष्ट करने के प्रयास के रूप में मनाया जाता है। गायत्री चोपड़ा ने महर्षि अरविंद की लिखी माँ दुर्गा की प्रार्थना का पाठ किया। मान घीडिया और काश्वी रत्ना ने माँ दुर्गा के सभी नौ रूपों का महत्त्व एवं उन रूपों की आराधना से मिलने वाली उपलब्धियों के विषय में बताया। अभिजय और श्लोक बंसल ने इस ओर ध्यान आकर्षित किया कि हम देश के जिम्मेदार नागरिक हैं, हमें प्रदूषण रहित दशहरा मनाना चाहिए। ‘आयिगिरी नन्दिनी महिषासुर मर्दिनी…!’ इस प्रार्थना पर खुशी रस्तोगी ने नृत्य प्रस्तुत किया। विद्यार्थियों की इन प्रस्तुतियों से सभी भाव विभोर हो उठे थे।
इस अवसर पर अतिथि के रूप में श्री मिथिलेश नारायन एवं श्री प्रशांत जी उपस्थित थे। मिथिलेश नारायन जी राष्ट्रीय सेवक संघ से लंबे समय से जुड़े हैं। श्री प्रशांत जी प्रचारक होने के साथ इंडियन इंडस्ट्री एसोसिएशन के चेयरमैन हैं। दोनों महानुभाव समाज सेवा के कार्य से जुड़े हुए हैं। श्री मिथिलेश नारायन जी ने विद्यार्थियों एवं शिक्षकों को संबोधित करते हुए, महान मराठा शासक शिवाजी के जीवन से जुड़ी घटनाओं के माध्यम से, सभी को उनकी तरह बनने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने ‘दिव्य प्रेम सेवा मिशन’ संस्था द्वारा आयोजित नाटक ‘जाणता राजा’ की कथावस्तु पर संक्षेप में बात करते हुए इसे देखने के लिए आमंत्रित किया। ‘जाणता राजा’ का अर्थ है ‘दूरदर्शी राजा’ और यह नाटक शिवाजी के जीवन पर आधारित है।
प्रधानाचार्या श्रीमती प्रॉमिनी चोपड़ा, उपप्रधानाचार्या ‘एकेडमिक्स’ श्रीमती दीपा वाही, उप प्रधानाचार्य ‘एडमिनिस्ट्रेशन’ श्री अनपुम विद्यार्थी ने अतिथियों का स्वागत किया एवं विद्यार्थियों का उत्साह बर्धन किया। हिन्दी भाषा की अध्यापिका श्रीमती किरन सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन किया। इस विशेष प्रार्थना सभा का यह प्रभाव पड़ा कि सभी विद्यार्थी मन ही मन अपनी बुराइयों को दूर करने और शिवाजी बनने का संकल्प ले रहे थे।